यादो का संग्राम मुझे घेरे है अब तो उर्वशी
मेरे जीवन के दरिया में है इक नाम सरिता उर्वशी
हैं कंठ शीथिल और नयन नरम
ये भीतर कैसा शोर है
है प्रेम जंहा मृत सैया पर
बैठी है वहा इक उर्वशी
वन भी है और कुसुम भी है
है महक नहीं पर उर्वशी
मेरे जीवन के बागों में
इक सेंध तुम्हारी उर्वशी
मैं रावण हूँ तुम नाभि हो
तुम राज मेरा हो उर्वशी
मैं कंगला राजा लुटा हुआ
तुम ताज मेरा हो उर्वशी
मुझे धुप जलती है पल पल
तुम छाह बनजना उर्वशी
जो पकडे मेरी बाहों को
वो बाह बनजना उर्वशी
मैं नाज करू जिसे हासिल कर
मेरा अहंकार बनो तुम उर्वशी
जिसको खोने से डर जाऊ
भय विकराल बनो तुम उर्वशी
हो खुशबू तुम्हारे जिस्म की
और जाल तुम्हारे केशो के
गम भूलू तुम्हारी गोदी में
मेरी माँ बनजना उर्वशी
मैं जीत रहा हूँ खुद को
मेरी हार बनी तुम उर्वशी
हर दिन से खुद को नफरत है
मेरा प्यार बनी तुम उर्वशी
हूँ फिरता दिनभर आवारा
मेरा सार बनी तुम उर्वशी
सदियों से बेरोजगारों का
रोजगार बनी तुम उर्वशी
ये सपना सच हो जाये तो
क्या सार बनेगा उर्वशी
गर दीप प्र-दीप हो जाये तो
क्या संसार बनेगा उर्वशी